Story of Emergency 1975 : रेडियो पर गूंजी इंदिरा की आवाज, देश में आपातकाल लागू किया जाता है

Story of Emergency 1975 : 26 जून 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर आपातकाल की घोषणा की. इंदिरा के इस ऐलान से पूरा देश चौकन्ना रह गया था. आपातकाल को 43 साल हो गए हैं इसे भारतीय लोकतंत्र के काले दिनों में से एक बताया जाता है. 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही.

यह भी पढ़ें:- छत्तीसगढ़ में PCC चीफ बदलने की कवायद, मंत्री कश्यप ने कहा- बैज को दे देना चाहिए इस्तीफा

उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी.

क्यों लागू की गई थी इमरजेंसी?
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है. वहीं अगले सुबह यानी 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में आपातकाल की घोषणा के बारे में सुना. आपातकाल के पीछे कई वजहें बताई जाती है, जिसमें सबसे अहम है 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला.

कहा जाता है कि आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही रख दी गई थी. इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था. इतना ही नहीं, इंदिरा पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी गई थी.

इंदिरा आसानी से सिंहासन खाली करने के मूड में नहीं थीं. संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए. उधर विपक्ष सरकार पर लगातार दबाव बना रहा था. नतीजा ये हुआ कि इंदिरा ने 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया. आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिया.

JP की अगुवाई में एकजुट हुआ विपक्ष
आपातकाल में जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया. पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया. सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी. अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए. संजय गांधी की मनमानियां सीमा पार कर गई थीं. उनके इशारे पर न जाने कितने पुरुषों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी.

छिन गए थे अधिकार
बताया जाता है कि सरकार ने पूरे देश को एक बड़े जेलखाना में बदल दिया गया था. आपातकाल (Story of Emergency 1975) के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था. इमरजेंसी में जीने तक का हक छीन लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी 2011 में अपनी गलती मानी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी, 2011 को यह स्वीकार किया कि देश में आपातकाल के दौरान इस कोर्ट से भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था.

जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ. 1977 में फिर आम चुनाव हुए. 1977 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. 23 मार्च 1977 को इक्यासी वर्ष की उम्र में मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने. ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी.

छिनी प्रेस की आजादी, विपक्षी नेताओं को हुई जेल
आपातकाल (Story of Emergency 1975) का वो काला दौर था, जब सरकार ने तमाम विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई, और नागरिक स्वतंत्रताओं को सीमित किया। आरएसएस समेत 24 संगठनों पर बैन लगा दिया गया। इसके अलावा, इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में व्यापक सामाजिक और आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें जबरन नसबंदी और स्लम क्लीयरेंस जैसे कठोर उपाय शामिल थे। कई इतिहासकारों का मानना है कि आपातकाल का उपयोग इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को मजबूत करने और विरोधी आवाजों को दबाने के लिए किया। यह घटना भारतीय लोकतंत्र पर एक गहरा आघात थी और इसने देश के राजनीतिक इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ी।

Back to top button